परम श्रद्धेय अघोर मूर्ति श्री भैया जी ने अपने जीवन का संकल्प “मानव सेवा” ही निश्चित किया । यह प्रेरणा उन्होंने अपने मानस गुरु परम पूज्य अघोरेश्वर अवधूत भगवान् राम जी से ग्रहण की जिसके पुष्पित एवं पल्लवित होने में गुरुपद बाबा संभव राम जी की भी महती भूमिका है ।
परम श्रद्धेय अघोर मूर्ति श्री भैया जी ने “सेवा परमो धर्म:” की आधारशिला पर अपना जीवन समर्पित किया, वह भी बिना किसी भी प्रचार-प्रसार के एवं आडम्बर के । परम श्रद्धेय अघोर मूर्ति श्री भैया जी ने मानव सेवा द्वारा समाज के अंतिम व्यक्तियों, असहायों तथा समाज में आचरण, आत्मा, विचारों, एवं व्यवहार में शुद्धता पर बल दिया । उनकी मानव सेवा की परिकल्पना में जाति-धर्म, भाषा-संस्कृति की कोई दीवार नहीं । अपनी मानव सेवा की क्रांति को उन्होंने अभेद रूप रखा ।
परम श्रद्धेय अघोर मूर्ति श्री भैया जी ने कहा कि “मानव जीवन की सार्थकता उन असहाय एवं समाज के अंतिम व्यक्ति के कल्याण के लिए किए गए प्रयासों में है I उनका मानना है कि यदि समाज में जीवन की असमानता रहेंगी तो ये समाज और राष्ट्र के लिए कदाचित भी उचित नहीं होगा I जीवन की स्थितियां व्यक्ति के जन्म जन्मांतर के कर्मों से निर्मित प्रारब्ध से होती हैं लेकिन सभी को अपने जीवन में आगे बढ़ने का अधिकार है I प्रकृति यही कहती है, जब एक छोटे से बीज को हम धरती पर बोते तो वह कालान्तर में अच्छे रख-रखाव के बाद एक बड़ा सा वृक्ष बन जाता है I जब प्रकृति हमको ये प्रदर्शित कर रही है तो हम मानव श्रेष्ठ अपने समाज में प्रकृति के इस उदाहरण का अनुपालन क्यों नहीं करते क्या अच्छा जीवन, अच्छी शिक्षा, सिर्फ कुछ लोगों के लिए ही है? क्या कुछ लोगों को इसलिए प्रगति की यात्रा में पीछे छोड़ दिया जाए कि उनके पास संसाधन नहीं हैं ? ज्ञान नहीं है? मार्गदर्शन नहीं है? ये तो बिलकुल ही अनुचित होगा और मानवता के विरुद्ध होगा, इसलिए यह कहा जाता है कि हम सभी प्राणियों को एक दूसरे से प्रेम, स्नेह, सहायता एवं सद्भाव रखना चाहिए क्योंकि समूह की प्रसन्नता समाज की प्रसन्नता होती है और यदि समाज सम्पन्न और प्रसन्न है तो राष्ट्र संपन्न और सशक्त होता है I”
प्रेरणा परमार्थ आश्रम, प्रयागराज, परम पूज्य अघोरेश्वर अवधूत भगवान राम जी द्वारा स्थापित श्री सर्वेश्वरी समूह संस्थान देवस्थान, पड़ाव, राजघाट, वाराणसी के उद्देश्यों एवं कार्यक्रमों का ही अनुपालन तथा अनुकरण करता है I परम श्रद्धेय अघोर मूर्ति श्री भैया जी , परम पूज्य अघोरेश्वर अवधूत भगवान राम जी द्वारा समाज कल्याण एवं मानव सेवा हेतु निर्धारित किए गए 19 सूत्री कार्यक्रमों को ही वर्ष भर प्रेरणा परमार्थ आश्रम के द्वारा मूलतः क्रियान्वित किया जाता है I परम श्रद्धेय अघोर मूर्ति श्री भैया जी के अनुसार “बाबा के उद्देश्यों पर चलना ही उनका कर्तव्य है और वे अपनी क्षमता के अनुसार उस पथ पर चलते रहेंगे I”
श्री सर्वेश्वरी समूह संस्थान देवस्थानम की ६४वीं स्थापना दिवस के अवसर पर प्रयागराज स्थित प्रेरणा परमार्थ आश्रम के श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि “ परम पूज्य अघोरेश्वर अवधूत भगवान राम जी ने अपने ज्ञात-अज्ञात, दृश्य-अदृश्य शक्तियों का उपयोग मानव कल्याण के लिए उन्होंने किया है I उस मानव कल्याण के निमित्त एक सुसंगठित एवं सुव्यवस्थित, अध्यात्मिक एवं सामाजिक जागरूकता लाने के लिए २१ सितम्बर १९६१ को उन्होंने एक संस्था की स्थापना की जिसका नाम श्री सर्वेश्वरी समूह संस्थान देवस्थानम् है I 21 सितम्बर भौगोलिक दृष्टि से एक ऐसा दिन है जब दिन और रात बराबर होता है I औघड़ लोग समदर्शी होते हैं, वे सब में समान दृष्टि रखते हैं I उनके अनुसार सभी लोग समान हैं I कोई छोटा नहीं है कोई बड़ा नहीं है, जाति के मामले में भी न कोई ऊंचा है और न कोई नीचा, सब एक हैं, सब ईश्वर की संतान हैं I जो प्राणी, प्राणीमात्र में परमपिता परमेश्वर को देखता हो, यह परमपिता परमेश्वर को प्राणी मात्र में देखता हो वह कैसे किसी से घृणा, द्वेष कर सकता है, वो तो सदा सर्वत्र हर में अपने प्रभु को देखता है I तो ये वाणी भी 21 सितम्बर के महत्व को बताते हुए यह संदेश दे रही है I
परम श्रद्धेय परम श्रद्धेय अघोर मूर्ति ने आगे बताया कि “ श्री सर्वेश्वरी समूह का जो उद्देश्य है, सर्वेश्वरी एक ऐसा समूह जो विचारवान लोगों के हों, गंभीर हों, जो औदार्य हों, जो स्थिर चट्टान की तरह वाली स्थिर रहने वाले व्यक्ति हों, जो सत्य बोलने वाले हों, ऐसे लोगों का समूह है ये I ये कोई भीड़ इकट्ठा करने वाली संस्था नहीं है, ये ऐसा समूह है जो लोग विचारवान हैं I आत्मरक्षा की चार विधियां होतीं हैं जिसमें “विचार” भी होता है I जो व्यक्ति विचारवान होता है, वह माँ सर्वेश्वरी का प्रिय है I सर्वेश्वरी का मतलब यह है कि वह जगतजननी है, कण कण में व्याप्त हैं, उनकी उपासना करने, उनके नजदीक बैठने वालों का समूह है I एक ऐसा समूह जहाँ स्थित है, वह संस्थान हो गया, और ऐसा जो जगह है, स्थान है, वह स्थान वह देवतुल्य हो गया । इसका उद्देश्य क्या है? परम पूज्य ने अपनी समस्त शक्तियों का उपयोग इन ७ प्रमुख उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया है |
०१- राष्ट्र हित को सर्वोपरि समझना:
हमारे अंदर राष्ट्रीयता की भावना हो I आज वर्तमान काल में राष्ट्रीयता की भावना की कितनी आवश्यकता है, देश के प्रति हमारा जो दायित्व है, जो कर्तव्य हैं, उसको हमें यह सिखाता है I
०२- मानव मात्र को भाई समझना:
आज देख रहे हैं कि कितने हमारे समाज में आपस में द्वन्द है, लड़ाई -झगडा है, एक-दूसरे से वैमनस्यता है, बैर है, एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्तियां हैं, एक दूसरे के प्रति आज हम लोग आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाए हुए हैं, ऐसे में उन्होंने दूसरा उद्देश्य बताया कि मानव-मात्र को भाई समझो, सबके प्रति आदर की भावना रखना, सबके प्रति प्रेम की भावना रखना, सबसे सहिष्णुता से बात करना, किसी के प्रति ऊंच-नीच की भावना न रखना I
०३- नारी-मात्र के प्रति मातृभाव रखना:
अपनी पत्नी को छोड़ कर अन्य सभी मातृ शक्ति हेतु मातृ भाव रखना I आज समाज में देख रहे हैं कि स्त्री-पुरुष विवाहित होते हुए भी विवाहेत्तर संबंध बना कर रखे हुए हैं I श्री सर्वेश्वरी समूह हमें सिखाता है कि अपनी पत्नी को छोड़ कर समाज की समस्त महिलाएं, चाहे बहन के रूप में हों, चाहे बेटी के रूप में हों, चाहे माता के रूप में, ऐसे भावनापूर्ण हों, जिसमें प्रेम हो, आदर हो I
०४- बालक-बालिकाओं के प्रति विविध कार्यक्रमों को आयोजित करना:
बालक-बालिकाओं के विकास के लिए, उन्हें चरित्रवान बनाने के लिए I आप देख रहे हैं कि छोटा बच्चा यहाँ है और उसकी माँ उसे मोबाइल पकड़ा रही है क्यों कि बच्चा खेलेगा, अभी हम सामने देख रहे थे कि एक बच्चा तंग कर रहा था तो उसकी माँ ने उसे मोबाइल पकड़ा दिया तो बच्चा बड़ा हो कर कितना बड़ा चरित्रवान बनेगा? तो बाबा जी इस बात को आज से ६० साल पहले, इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने बालक-बालिकाओं के लिए सदुद्देश्य पूर्ण कार्यक्रमों के बारे में कहा I परम श्रद्धेय अघोर मूर्ति आगे कहते हैं कि हमने इस लिए “जागो युवा भारत “ कार्यक्रम का अभियान छेड़ा है जिसमें इन बच्चो को अपने सनातन वैदिक धर्म के बारे में बताया जाये I
०५- असहाय, उपेक्षित लोगों की सेवा करना
०६- नशाखोरी, सामजिक कुरीतियाँ: इन सबके प्रति एक आंदोलन चलाना ।
०७- वृक्षारोपण उन्होंने इसी क्रम में आगे बताया कि सनातन वैदिक धर्म के आधार पर भारतीय संस्कृति के अनुरूप एक भारतीय में भारतीयता की भावना जागृत करना ही हमारा मूल धर्म है I इसके अतिरिक्त प्रेरणा परमार्थ आश्रम द्वारा स्थानीय रूप से २१ सूत्रीय कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं । जिसकी सूची अलग से दी गयी है I