Vachanamrit

परम श्रद्धेय अघोर मूर्ति श्री भैया जी वचनामृत

मानव जीवन की सार्थकता उन असहाय एवं समाज के अंतिम व्यक्ति के कल्याण के लिए किए गए प्रयासों में है I उनका मानना है कि यदि समाज में जीवन की असमानता रहेंगी तो ये समाज और राष्ट्र के लिए कदाचित भी उचित नहीं होगा I जीवन की स्थितियां व्यक्ति के जन्म जन्मांतर के कर्मों से निर्मित प्रारब्ध से होती हैं लेकिन सभी को अपने जीवन में आगे बढ़ने का अधिकार है I प्रकृति यही कहती है, जब एक छोटे से बीज को हम धरती पर बोते तो वह कालान्तर में अच्छे रख-रखाव के बाद एक बड़ा सा वृक्ष बन जाता है I जब प्रकृति हमको ये प्रदर्शित कर रही है तो हम मानव श्रेष्ठ अपने समाज में प्रकृति के इस उदाहरण का अनुपालन क्यों नहीं करते क्या अच्छा जीवन, अच्छी शिक्षा, सिर्फ कुछ लोगों के लिए ही है? क्या कुछ लोगों को इसलिए प्रगति की यात्रा में पीछे छोड़ दिया जाए कि उनके पास संसाधन नहीं हैं ? ज्ञान नहीं है? मार्गदर्शन नहीं है? ये तो बिलकुल ही अनुचित होगा और मानवता के विरुद्ध होगा, इसलिए यह कहा जाता है कि हम सभी प्राणियों को एक दूसरे से प्रेम, स्नेह, सहायता एवं सद्भाव रखना चाहिए क्योंकि समूह की प्रसन्नता समाज की प्रसन्नता होती है और यदि समाज सम्पन्न और प्रसन्न है तो राष्ट्र संपन्न और सशक्त होता है I

आज के युवा में जो नकारात्मक विचार एवं ऊर्जा है उसे निकल कर सकारात्मक विचार एवं ऊर्जा को भरा जाये, जिससे वे अपने जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में अग्रसर हों.I एक अच्छे इंसान बने, अच्छे पदों पर स्थापित हों, उस पद पर स्थापित हो कर परिवार का भी पालन करें, समाज का भी पालन करें एवं राष्ट्र के प्रति समर्पण की भी भावना जगे। मेरा प्रयास है कि आज का युवा खूब मन लगा कर पढ़ाई करे I

युवाओं में उत्साह एवं उमंग आये और वे अपनी उन्नति हेतु पढ़ाई के प्रति गंभीर हों, उत्सुक हों और उनमें एक सात्विक उत्साह की भावना विकसित हो एवं तामसिक उत्साह की भावनाओं का दमन हो,क्योंकि तामसिक उत्साह की भावनाएं सदैव व्यक्ति को नीचे गिरातीं हैं और इसके विपरीत सात्विक उत्साह की भावनाएं सदैव सकारात्मक उन्नति की ओर ले जातीं हैं I

बाहरी सौंदर्य या सुंदरता तभी अच्छी लगती है जब व्यक्ति आंतरिक रूप से सूंदर हो, उसके विचार एवं सुन्दरता का कोई अर्थ नहीं है इसके विपरीत यदि आप बाहर से सुन्दर नहीं भी दिखते हों, साधारण से परिधान में भी हों परन्तु यदि आपका चरित्र, आचरण एवं विचार अच्छा है तो आप समाज में सभी स्थानों पर सम्मान के पात्र होंगे I परम श्रद्धेय अघोर मूर्ति युवाओं को आंतरिक सौंदर्य विकसित करने पर सदैव बल देते हुए कहते हैं कि “ आंतरिक सौंदर्य क्या है? वह जहाँ कोई व्यक्ति परिश्रम करता है, पुरुषार्थ करता है, सेवा की भावना रखता है, बड़ों का आदर करता है, राष्ट्र से प्रेम करता है, यह अंदर का सौंदर्य होता है I

युवाओं को समय से सोना एवं जागना चाहिए, अनावश्यक देर रात्रि तक जागना एवं सुबह देर तक सोना, यह सब केवल हानि ही पहुचायेगा I परम श्रद्धेय अघोर मूर्ति का कहना है कि युवाओं को व्यर्थ वार्तालाप से दूर रहना चाहिए एवं केवल अपनी पढ़ाई में ध्यान देकर उच्च स्थानों पर प्रतिष्ठित होना चाहिए I

परम पूज्य अघोरेश्वर अवधूत भगवान राम जी के विचारों का चिंतन और मनन करना चाहिए तथा उस पर आचरण भी करना चाहिए इससे वह न केवल जीवन में सफल होंगे बल्कि उनके अंदर एक अच्छे चरित्र का निर्माण होगा और उससे उन्हें समाज में सभी स्थानों पर सम्मान भी प्राप्त होगा I

इस मृत्युलोक के मायावी जीवन में सब कुछ अस्थाई है लेकिन यदि कुछ स्थाई है तो वह है आपका स्वयं का किया गया कर्म I वही आपका प्रारब्ध बनाता है, वही आपका संचित कर्म बनता है I आप मनसा, वाचा एवं कर्मणा सत्कर्म ही करें I चाहे जैसी भी दुरूह परिस्थितियां हो,अध्यात्म का संबल लेते हुए सदगुरु एवं ईश्वर पर अटूट विश्वास करते हुए केवल सत्कर्म के पथ के अडिग एवं अविचलित पथिक बने रहें I

सभी को अच्छे से रहना चाहिए, यहाँ अच्छे से अभिप्राय केवल भौतिक संसाधनों से युक्त जीवन नहीं होता बल्कि यहाँ अच्छे से रहिये का अर्थ है एक सात्विक, पुरुषार्थी, पारमार्थिक, आध्यात्मिक, धार्मिक एवं मानवीय संवेदनाओं से युक्त जीवन I हम यह कदापि भी नहीं कहते कि व्यक्ति को धनोपार्जन नहीं करना चाहिए बल्कि सही माध्यमों एवं परिश्रम से अर्जित धन कमा कर एक संतुलित जीवन जीना चाहिए I विचारों, चरित्र एवं आचरण में सादगी एवं पारदर्शिता बहुत आवश्यक है I “अच्छे से रहें” यह वाक्य समग्रता एवं सम्पूर्णता में व्यवहार में लाना है, भौतिक लोलुपता के ऐच्छिक एवं वैकल्पिक सन्दर्भ में नहीं वरन व्यवहारिक आध्यात्मिकता के रूप में यह वाक्य, यह दर्शन व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व में स्पष्टता के साथ झलकना चाहिए I

मैं परम पूज्य अघोरेश्वर अवधूत भगवान राम जी के द्वारा प्रशस्त वैचारिक राजमार्ग का एक साधारण सा पथिक हूँ एवं पूज्य अघोरेश्वर के विचारों के प्रति अपना उत्तरदायित्व निभा रहा हूँ I

जितना व्यक्ति अपने शरीर की स्वच्छता रखता है उससे कई गुना अधिक उसे आत्मा, भाव, आचरण, विचारो एवं चारित्रिक की स्वच्छता एवं शुद्धता रखना परमावश्यक है I बाबा ने कहा है कि देवी भाव की भूखी होतीं हैं, उसी प्रकार से गुरु भी शुद्ध श्रद्धा से ही प्रसन्न होता है I यहाँ नकली भाव एवं श्रद्धा का प्रदर्शन स्वीकार्य नहीं है I

यह पूर्णतया अराजनैतिक आश्रम है जो न तो किसी भी राजनैतिक धारा से सम्बद्ध है और न ही इसे किसी भी प्रकार के औद्योगिक घरानों एवं सरकारों से सहायता प्राप्त है अपितु आश्रम यह साधारण जनमानस के छोटे-छोटे सहयोग से संचालित है जो कि समाज के अंतिम छोर पर खड़े हुए व्यक्ति के कल्याण एवं उत्थान के लिए समर्पित है I

मानव जाति को मानवता का पाठ पढाने के लिए, उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए, हमारे अघोर पथ पर आचरण को बहुत महत्ता दी गयी है I अगर आप कुछ करना चाहते तो अपने आचरण से ही कर सकते हो, आप ये सोचोगे कि पूजा-पाठ कर लेने से मेरा क्लेश कट जाएगा, हमारा दुःख कट जाएगा, उससे भी सर्वोपरि है आपका आचरण I हम लोगों को बाबा जी यही बताते हैं कि अच्छा आचरण करनेसे आपको सुख मिल सकता है, शांति मिल सकती है और समृद्धि मिल सकती है I इस परम्परा में अनादि काल से सनातन वैदिक धर्म में हमारे संतों ने आश्रम की व्यवस्था की और आश्रम के बाद उन्होंने सत्संग रखा ताकि हम सब लोग उनके विचारों को सुन कर अपने जीवन को सुन्दर बना सकें, व्यवस्थित बना सकें, अनुशासित बना सकें I

मौन रहने से सहनशीलता का भाव, जो सहनशील का भाव, जो सहनशील होगा वही तो मौन होगा और कैसे I आप को अगर कोई दो शब्द बोल देता है तो आप उसे चार बात बताते हो, आप अगर १० आदमी के बीच में बैठे हो अगर अच्छी बातें भी हो रहीं हैं, तो आपको लगता है कि हम छोटे न बन जाएँ इस लिए आप ज्ञान की बातें करने लग जाते हो, नहीं भी आता है तो भी आप बताने लगते हो कि हमको कोई ये न समझ ले कि हमको कुछ नहीं आता है, तो बंधुओं यह जीवन बहुत ही श्रेष्ठ है , देव-दुर्लभ है, बहुत ही अल्प है, इसलिए हम लोगों को शुभ कर्म करना चाहिए और ज्ञान को समझना चाहिए कि हमारे जीवन का महत्व क्या है, जीवन बहुत ही अल्प है, अनिश्चित है इसलिए इसमें जितना गागर में सागर भर सकते हो, आचरण रूपी अपने क्रिया-कलाप, अच्छे आचरण कर सकते हो, वही आपका अपना है I और जितना भी आप काम कर सकते हो ठीक है करो , अच्छा कार्य, परिवार का पालन खूब अच्छे से करो, क्यों कि परिवार का पालन तब आप और अच्छे से करोगे जब किसी संत की बात पर चलोगे, तो आपकी सम्यक दृष्टि रहेगी, सम्यक विचार रहेगा, सम्यक ज्ञान होगा आपके पास, तब आप जीवन को और सुन्दर, सुव्यवस्थित और अनुशासित बना सकते हो I